Thursday, February 1, 2018

छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी | Chhatrapati Shivaji Maharaj History in Hindi

छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी | Chhatrapati Shivaji Maharaj History in Hindi

 
शिवाजी Shivaji, जिन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज Chhatrapati Shivaji Maharaj, शिवाजी राजे भोसले Shivaji Raje Bhosale के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने भारत में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। इन्हें आद्य-राष्ट्रवादी और हिन्दूओ का नायक भी माना जाता है। 1674 में Shivaji Maharaj का राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति का ख़िताब मिला। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनैतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फ़ारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया।

पूरा नाम  – शिवाजी शहाजी भोसले / Shivaji Maharaj

जन्म       – 19 फरवरी, 1630 / अप्रैल, 1627

जन्मस्थान – शिवनेरी दुर्ग (पुणे)

पिता       – शहाजी भोसले

माता       – जिजाबाई शहाजी भोसले

विवाह     – सइबाई के साथ


शिवाजी का प्रारंभिक जीवन | Early life of Shivaji Maharaj | Shivaji Maharaj History
माँ जीजाबाई के साथ

शिवाजी महाराज Shivaji Maharaj का जन्म 1627 में पुणे जिले के जुनार शहर में शिवनेरी दुर्ग में हुआ। इनकी जन्मदिवस पर विवाद है लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने 19 फरवरी 1630 को उनका जन्मदिवस स्वीकार किया है। उनकी माता ने उनका नाम भगवान शिवाय के नाम पर शिवाजी रखा जो उनसे स्वस्थ सन्तान के लिए प्रार्थना करती रहती थी। Shivaji Maharaj शिवाजी के पिताजी शाहजी भोंसले एक मराठा सेनापति थे जो डेक्कन सल्तनत के लिए काम करते थे। Shivaji Maharaj की माँ जीजाबाई सिंधखेड़ के लाखूजीराव जाधव की पुत्री थी। शिवाजी के जन्म के समय डेक्कन की सत्ता तीन इस्लामिक सल्तनतो बीजापुर , अहमदनगर और गोलकोंडा में थी। शाहजी अक्सर अपनी निष्ठा निजामशाही, आदिलशाह और मुगलों के बीच बदलते रहते थे लेकिन अपनी जागीर हमेशा पुणे ही रखी और उनके साथ उनकी छोटी सेना भी रहती थी।

शिवाजी महाराज अपनी माँ जीजाबाई से बेहद समर्पित थे जो बहुत ही धार्मिक थी। धार्मिक वातावरण ने शिवाजी पर बहुत गहरा प्रभाव डाला था जिसकी वजह से Shivaji Maharaj ने महान हिन्दू ग्रंथो रामायण और महाभारत की कहानिया भी अपनी माता से सूनी । इन दो ग्रंथो की वजह से वो जीवनपर्यन्त हिन्दू महत्वो का बचाव करते रहे। इसी दौरान शाहजी ने दूसरा विवाह किया और उनकी दुसरी पत्नी तुकाबाई के साथ शाहजी कर्नाटक में आदिलशाह की तरफ से सैन्य अभियानो के लिए चले गये। उन्होंने शिवाजी और जीजाबाई को छोडकर उनका सरंक्षक दादोजी कोंणदेव को बना दिया। दादोजी ने शिवाजी को बुनियादी लड़ाई तकनीके जैसे घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी सिखाई।

Shivaji Maharaj शिवाजी महाराज बचपन से ही उत्साही योद्धा थे हालांकि इस वजह से उन्हें केवल औपचारिक शिक्षा दी गयी जिसमे वो लिख पढ़ नही सकते थे लेकिन फिर भी उनको सुनाई गई बातो को उन्हें अच्छी तरह याद रहता था।शिवाजी ने मावल क्षेत्र से अपने विश्वस्त साथियो और सेना को इकट्टा किया। मावल साथियों के साथ Shivaji Maharaj शिवाजी खुद को मजबूत करने और अपनी मातृभूमि के ज्ञान के लिए सहयाद्रि रेंज की पहाडियों और जंगलो में घूमते रहते थे ताकि वो सैन्य प्रयासों के लिए तैयार हो सके।

12 वर्ष की उम्र में शिवाजी को बंगलौर ले जाया गया जहा उनका ज्येष्ठ भाई साम्भाजी और उनका सौतेला भाई एकोजी पहले ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित थे। Shivaji Maharaj का 1640 में निम्बालकर परिवार की सइबाई से विवाह कर दिया गया। 1645 में किशोर शिवाजी ने प्रथम बार हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा दादाजी नरस प्रभु के समक्ष प्रकट की।
शिवाजी का आदिलशाही सल्तनत के साथ संघर्ष | Conflict with Adilshahi sultanate of Shivaji Maharaj | Shivaji Maharaj History
शिवाजी का मुगलों के साथ संघर्ष और शाइस्ता खाँ पर हमला
1645 में 15 वर्ष की आयु में Shivaji Maharaj शिवाजी ने आदिलशाह सेना को आक्रमण की सुचना दिए बिना हमला कर तोरणा किला विजयी कर लिया। फिरंगोजी नरसला ने शिवाजी की स्वामीभक्ति स्वीकार कर ली और शिवाजी ने कोंडाना का किले पर कब्जा कर लिया। कुछ तथ्य बताते है कि शाहजी को 1649 में इस शर्त पर रिहा कर दिया गया कि शिवाजी और संभाजी कोंड़ना का किला छोड़ देवे लेकिन कुछ तथ्य शाहजी को 1653 से 1655 तक कारावास में बताते है। शाहजी की रिहाई के बाद वो सार्वजनिक जीवन से सेवामुक्त हो गये और शिकार के दौरान 1645 के आस पास उनकी मृत्यु हो गयी। पिता की मौत के बाद Shivaji Maharaj शिवाजी ने आक्रमण करते हुए फिर से 1656 में पड़ोसी मराठा मुखिया से जावली का साम्राज्य हथिया लिया।

1659 में आदिलशाह ने एक अनुभवी और दिग्गज सेनापति अफज़ल खान को शिवाजी Shivaji Maharaj को तबाह करने के लिए भेजा ताकि वो क्षेत्रीय विद्रोह को कम कर देवे। 10 नवम्बर 1659 को वो दोनों प्रतापगढ़ किले की तलहटी पर एक झोपड़ी में मिले। इस तरह का हुक्मनामा तैयार किया गया था कि दोनों केवल एक तलवार के साथ आयेगे । Shivaji Maharaj शिवाजी को को संदेह हुआ कि अफज़ल खान उन पर हमला करने की रणनीति बनाकर आएगा इसलिए शिवाजी ने अपने कपड़ो के नीचे कवच, दायी भुजा पर छुपा हुआ बाघ नकेल और बाए हाथ में एक कटार साथ लेकर आये। तथ्यों के अनुसार दोनों में से किसी एक ने पहले वार किया , मराठा इतिहास में अफज़ल खान को विश्वासघाती बताया है जबकि पारसी इतिहास में शिवाजी को विश्वासघाती बताया है। इस लड़ाई में अफज़ल खान की कटार को शिवाजी के कवच में रोक दिया और Shivaji Maharaj शिवाजी के हथियार बाघ नकेल ने अफज़ल खान पर इतने घातक घाव कर दिए जिससे उसकी मौत हो गयी । इसके बाद शिवाजी ने अपने छिपे हुए सैनिको को बीजापुर पर हमला करने के संकेत दिए।

10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ का युद्ध हुआ जिसमे Shivaji Maharaj शिवाजी की सेना ने बीजापुर के सल्तनत की सेना को हरा दिया। चुस्त मराठा पैदल सेना और घुडसवार बीजापुर पर लगातार हमला करने लगे और बीजापुर के घुड़सवार सेना के तैयार होने से पहले ही आक्रमण कर दिया। मराठा सेना ने बीजापुर सेना को पीछे धकेल दिया। बीजापुर सेना के 3000 सैनिक मारे गये और अफज़ल खान के दो पुत्रो को बंदी बना लिया गया। इस बहादुरी से शिवाजी मराठा लोकगीतो में एक वीर और महान नायक बन गये। बड़ी संख्या में जब्त किये गये हथियारों ,घोड़ो ,और दुसरे सैन्य सामानों से मराठा सेना ओर ज्यादा मजबूत हो गयी। मुगल बादशाह औरंगजेब ने शिवाजी को मुगल साम्राज्य के लिए बड़ा खतरा मान लिया।

प्रतापगढ़ में हुए नुकसान की भरपाई करने और नवोदय मराठा शक्ति को हराने के लिए इस बार बीजापुर के नये सेनापति रुस्तमजमन के नेतृत्व में शिवाजी Shivaji Maharaj के विरुद्ध 10000 सैनिको को भेजा। मराठा सेना के 5000 घुड़सवारो की मदद से शिवाजी ने कोल्हापुर के निकट 28 दिसम्बर 1659 को धावा बोल दिया।आक्रमण को तेज करते हुए शिवाजी ने दुश्मन की सेना को मध्य से प्रहार किया और दो घुड़सवार सेना ने दोनों तरफ से हमला कर दिया। कई घंटो तक ये युद्ध चला और अंत में बीजापुर की सेना बिना किसी नुकसान के पराजित हो गयी और सेनापति रुस्तमजमन रणभूमि छोडकर भाग गया।आदिलशाही सेना ने इस बार 2000 घोड़े औउर 12 हाथी खो दिए।

1660 में आदिलशाह ने अपने नये सेनापति सिद्दी जौहर ने मुगलों के साथ गठबंधन कर हमले की तैयारी की। उस समय शिवाजी की सेना ने पन्हाला [वर्तमान कोल्हापुर ] में डेरा डाला हुआ था। सिद्दी जौहर की सेना किले से आपूर्ति मार्गों को बंद करते हुए शिवाजी की सेना को घेर लिया। पन्हाला में बमबारी के दौरान सिद्दी जौहर ने अपनी युद्ध क्षमता बढ़ाने के लिए अंग्रेजो से हथगोले खरीद लिए थे और साथ ही कुछ बमबारी करने के लिए कुछ अंग्रेज तोपची भी नियुक्त किये थे।इस कथित विश्वासघात से Shivaji Maharaj शिवाजी नाराज हो गये क्योंकि उन्होंने एक राजापुर के एक अंगरेजी कारखानेसे हथगोले लुटे थे।

घेराबंदी के बाद अलग अलग लेखो में अलग अलग बात बताई गयी है जिसमे से एक लेख में Shivaji Maharaj शिवाजी बचकर भाग जाते है और इसके बाद आदिल शाह खुद किले में हमला करने आता है और चार महीनो तक घेराबंदी के बाद किले पर कब्जा कर लेता है। दुसरे लेखो में घेराबंदी के बाद शिवाजी सिद्दी जौहर से बातचीत कर विशालगढ़ का किला उसको सौप देते है। शिवाजी के समर्पण या बच निकलने पर भी विवाद है। लेखो के अनुसार शिवाजी रात के अँधेरे में पन्हला से निकल जाते है और दुश्मन सेना उनका पीछा करती है।

मराठा सरदार बंदल देशमुख के बाजी प्रभु देशपांडे अपने 300 सैनिको के साथ स्वेच्छा से दुश्मन सेना को रोकने के लिए लड़ते है और कुछ सेना शिवाजी को सुरक्षित विशालगढ़ के किले तक पंहुचा देती है। पवन खिंड के युद्ध में छोटी मराठा सेना विशाल दुश्मन सेना को रोककर शिवाजी को बच निकलने का समय देती है। बाजी प्रभु देशपांडे इस युद्ध में घायल होने के बावजूद लड़ते रहे जब तक कि विशालगढ़ से उनको तोप की आवाज नही आ गयी। तोप की आवाज इस बात का संकेत था कि Shivaji Maharaj शिवाजी सुरक्षित किले तक पहुच गये है।

शिवाजी का मुगलों के साथ संघर्ष और शाइस्ता खाँ पर हमला | Shivaji Maharaj Clash with the Mughals and Attack on Shaista Khan 

शिवाजी का आदिलशाही सल्तनत के साथ संघर्ष
1657 तक शिवाजी Shivaji Maharaj ने मुगल साम्राज्य के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाये। शिवाजी ने बीजापुर पर कब्ज़ा करने में औरंगजेब को सहायता देने का प्रस्ताव दिया और बदले में उसने बीजापुरी किलो और गाँवों को उसके अधिकार में देने की बात कही। शिवाजी का मुगलों से टकराव 1657 में शुरू हुआ जब शिवाजी के दो अधिकारियो ने अहमदनगर के करीब मुगल क्षेत्र पर आक्रमण कर लिया। इसके बाद शिवाजी ने जुनार पर आक्रमण कर दिया और 3 लाख सिक्के और 200 घोड़े लेकर चले गये। औरंगजेब ने जवाबी हमले के लिए नसीरी खान को आक्रमण के लिए भेजा जिसने अहमदनगर में शिवाजी Shivaji Maharaj की सेना को हराया था। लेकिन औरंगजेब का Shivaji Maharaj शिवाजी के खिलाफ ये युद्ध बारिश के मौसम और शाहजहा की तबियत खराब होने की वजह से बाधित हो गया|

बीजापुर की बड़ी बेगम के आग्रह पर औरंगजेब ने उसके मामा शाइस्ता खाँ को 150,000 सैनिको के साथ भेजा। इस सेना ने पुणे और चाकन के किले पर कब्ज़ा कर आक्रमण कर दिया और एक महीने तक घेराबंदी की। शाइस्ता खाँ ने अपनी विशाल सेना का उपयोग करते हुए मराठा प्रदेशो और शिवाजी के निवास स्थान लाल महल पर आक्रमण कर दिया। शिवाजी ने शाइस्ता खाँ पर अप्रत्याशित आक्रमण कर दिया जिसमे Shivaji Maharaj शिवाजी और उनके 200 साथियों ने एक विवाह की आड़ में पुणे में घुसपैठ कर दी। महल के पहरेदारो को हराकर ,दीवार पर चढ़कर शहिस्ता खान के निवास स्थान तक पहुच गये और वहा जो भी मिला उसको मार दिया। शाइस्ता खाँ की शिवाजी से हाथापाई में उसने अपना अंगूठा गवा दिया और बच कर भाग गया। इस घुसपैठ में उसका एक पुत्र और परिवार के दुसरे सदस्य मारे गये। शाइस्ता खाँ ने पुणे से बाहर मुगल सेना के यहा शरण ली और औरंगजेब ने शर्मिंदगी के मारे सजा के रूप में उसको बंगाल भेज दिया।
शाइस्ता खाँ ने एक उज़बेक सेनापति करतलब खान को आक्रमण के लिए भेजा। 30000 मुगल सैनिको के साथ वो पुणे के लिए रवाना हुए और प्रदेश के पीछे से मराठो पर अप्रत्याशित हमला करने की योजना बनाई। उम्भेरखिंड के युद्ध में शिवाजी Shivaji Maharaj की सेना ने पैदल सेना और घुड़सवार सेना के साथ उम्भेरखिंड के घने जंगलो में घात लगाकर हमला किया। शाइस्ता खाँ के आक्रमणों का प्रतिशोध लेने और समाप्त राजकोष को भरने के लिए 1664 में शिवाजी ने मुगलों के ब्यापार केंद्र सुरत को लुट लिया।

औरंगजेब ने गुस्से में आकर मिर्जा राजा जय सिंह I को 150,000 सैनिको के साथ भेजा।जय सिंह की सेना ने कई मराठा किलो पर कब्जा कर लिया और शिवाजी को ओर अधिक किलो को खोने के बजाय औरंगजेब से शर्तो के लिए बाध्य किया। जय सिंह और शिवाजी Shivaji Maharaj के बीच पुरन्दर की संधि हुयी जिसमे शीवाजी ने अपने 23 किले सौप दिए और जुर्माने के रूप में मुगलों को 4 लाख रूपये देने पड़े| उन्होंने अपने पुत्र साम्भाजी को भी मुगल सरदार बनकर औरंगजेब के दरबार में सेवा की बात पर राजी हो गये।शिवाजी के एक सेनापति नेताजी पलकर धर्म परिवर्तन कर मुगलों में शामिल हो गये और उनकी बाहदुरी को पुरुस्कार भी दिया गया।मुगलों की सेवा करने के दस वर्ष बाद वो फिर शिवाजी के पास लौटे और शिवाजी के कहने पर फिर से हिन्दू धर्म स्वीकार किया।

1666 में औरंगजेब ने शिवाजी को अपने नौ साल के पुत्र संभाजी के साथ आगरा बुलाया। औरंगजेब की शिवाजी को कांधार भेजने की योजना थी ताकि वो मुगल साम्राज्य को पश्चिमोत्तर सीमांत संघटित कर सके। 12 मई 1666 को औरंगजेब ने शिवाजी को दरबार में अपने मनसबदारो के पीछे खड़ा रहने को कहा| शिवाजी ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध में दरबार पर धावा बोल दिया। शिवाजी को तुरंत आगरा के कोतवाल ने गिरफ्तार कर लिया।

Shivaji Maharaj Arrest in Agra and escape | शिवाजी को आगरा में बंदी बनाना और बच कर निकल जाना | Shivaji Maharaj History
Shivaji Maharaj History
शिवाजी को आगरा में बंदी बनाना और बच कर निकल जाना
Shivaji Maharaj शिवाजी ने कई बार बीमारी का बहाना बनाकर औरंगजेब को धोखा देकर डेक्कन जाने की प्रार्थना की। हालांकि उनके आग्रह करने पर उनकी स्वास्थ्य की दुवा करने वाले आगरा के संत ,फकीरों और मन्दिरों में प्रतिदिन मिठाइयाँ और उपहार भेजने की अनुमति दी। कुछ दिनों तक ये सिलसिला चलने के बाद Shivaji Maharaj शिवाजी ने संभाजी को मिठाइयो की टोकरी में बिठाकर और खुद मिठाई की टोकरिया उठाने वाले मजदूर बनकर वहा से भाग गये। इसके बाद शिवाजी और उनका पुत्र साधू के वेश में निकलकर भाग गये।भाग निकलने के बाद Shivaji Maharaj शिवाजी ने खुद को और संभाजी को मुगलों से बचाने के लिए संभाजी की मौत की अपवाह फैला दी।इसके बाद संभाजी को विश्वनीय लोगो द्वारा आगरा से मथुरा ले जाया गया ।

Shivaji Maharaj शिवाजी के बच निकलने के बाद शत्रुता कमजोर हो गयी और संधि की शर्ते 1670 के अंत तक खत्म हो गयी। इसके बाद शिवाजी ने एक मुगलों के खिलाफ एक बड़ा आक्रमण किया और चार महीनों में उन्होंने मुगलों द्वारा छीने गये प्रदेशो पर फिर कब्जा कर लिया। इस दौरान तानाजी मालुसरे ने सिंघाड़ का किला जीत लिया था। Shivaji Maharaj शिवाजी दुसरी बार जब सुरत को लुट करआ रहे थे तो दौड़ खान के नेतृत्व में मुगलों ने उनको रोकने की कोशिश की लेकिन उनको शिवाजी ने युद्ध में परास्त कर दिया। अक्टूबर 1670 में शिवाजी ने अंग्रेजो को परेशान करने के लिए अपनी सेना बॉम्बे भेजी , अंग्रेजो ने युद्ध सामग्री बेचने से मना कर दिया तो उनकी सेना से बॉम्बे की लकड़हारो के दल को अवरुद्ध करदिया।

Battle of Nesari and coronation of Shivaji Maharaj | नेसारी की जंग और शिवाजी का राज्याभिषेक | Shivaji Maharaj 
नेसारी की जंग और शिवाजी का राज्याभिषेक
1674 में मराठा सेना के सेनापति प्रतापराव गुर्जर को आदिलशाही सेनापति बहलोल खान की सेना पर आक्रमण के लिए बोला। प्रतापराव की सेना पराजित हो गयी और उसे बंदी बना लिया। इसके बावजूद शिवाजी ने बहलोल खान को प्रतापराव को रिहा करने की धमकी दी वरना वो हमला बोल देंगे। Shivaji Maharaj शिवाजी ने प्रतापराव को पत्र लिखकर बहलोल खान की बात मानने से इंकार कर दिया। अगले कुछ दिनों में शिवाजी को पता चला कि बहलोल खान की 15000 लोगो की सेना कोल्हापुर के निकट नेसरी में रुकी है। प्रतापराव और उसके छ: सरदारों ने आत्मघाती हमला कर दिया ताकि शिवाजी की सेना को समय मिल सके। मराठो ने प्रतापराव की मौत का बदला लेते हुए बहलोल खान को हरा दिया और उनसे अपनी जागीर छीन ली। Shivaji Maharaj शिवाजी प्रतापराव की मौत से काफी दुखी हुए और उन्होंने अपने दुसरे पुत्र की शादी प्रतापराव की बेटी से कर दी।

Shivaji Maharaj शिवाजी ने अब अपने सैन्य अभियानों से काफी जमीन और धन अर्जित कर लिया लेकिन उन्हें अभी तक कोई औपचारिक ख़िताब नही मिला था। एक राजा का ख़िताब ही उनको आगे आने वाली चुनौती से रोक सकता था। शिवाजी को रायगढ़ में मराठो के राजा का ख़िताब दिया गया। पंडितो ने सात नदियों के पवित्र पानी से उनका राज्याभिषेक किया। अभिषेक के बाद शिवाजी ने जीजाबाई से आशीर्वाद लिया। उस समारोह में लगभग रायगढ़ के 5000 लोग इक्ठटा हुए थे। शिवाजी को छत्रपति का खिताब भी यही दिया गया।राज्याभिषेक के कुछ दिनों बाद जीजाबाई की मौत हो गयी। इसे अपशकुन मानते हुए दुसरी बार राज्याभिषेक किया गया|

दक्षिणी भारत में विजय और शिवाजी के अंतिम दिन | Conquest in Southern India and Final Years | Shivaji Maharaj History
Shivaji Maharaj History
दक्षिणी भारत में विजय और शिवाजी के अंतिम दिन
1674 की शुरुवात में मराठो ने एक आक्रामक अभियान चलाकर खानदेश पर आक्रमण कर बीजापुरी पोंडा , कारवार और कोल्हापुर पर कब्जा कर लिया।इसके बाद शिवाजी ने दक्षिण भारत में विशाल सेना भेजकर आदिलशाही किलो को जीता। शिवाजी ने अपने सौतेले भाई वेंकोजी से सामजंस्य करना चाहा लेकिन असफल रहे इसलिए रायगढ़ से लौटते वक्त उसको हरा दिया और मैसूर के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा कर लिया।

1680 में शिवाजी बीमार पड़ गये और 52 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से चले गये। शिवाजी के मौत के बाद उनकी पत्नी सोयराबाई ने उसके पुत्र राजाराम को सिंहासन पर बिठाने की योजना बनाई। Sambhaji Maharaj संभाजी महाराज की बजाय 10 साल के राजाराम को सिंहासन पर बिठाया गया। हालांकि संभाजी ने इसके बाद सेनापति को मारकर रायगढ़ किले पर अधिकार कर लिया और खुद सिंहासन पर बैठ गया। Sambhaji Maharaj संभाजी महाराज ने राजाराम , उसकी पत्नी जानकी बाई को कारावास भेज दिया और माँ सोयराबाई को साजिश के आरोप में फांसी पर लटका दिया। Sambhaji Maharaj संभाजी महाराज इसके बाद वीर योद्धा की तरह कई वर्षो तक मराठो के लिए लड़े। शिवाजी के मौत के बाद 27 वर्ष तक मराठो का मुगलों से युद्ध चला और अंत में मुगलों को हरा दिया। इसके बाद अंग्रेजो ने मराठा साम्राज्य को समाप्त किया था।

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