Monday, January 29, 2018

हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण घाटी में परंपरा के नाम पर, यहां शादीशुदा महिलाओं को 5 दिनों तक रहना पड़ता है निर्वस्त्र

हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण घाटी में परंपरा के नाम पर, यहां शादीशुदा महिलाओं को 5 दिनों तक रहना पड़ता है निर्वस्त्र


भारत मान्यताओं और परम्पराओं का देश है जहां अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग परम्पराओं का प्रचलन है। हर राज्य विशेष की अपनी परम्पराएं और मान्यताए हैं। वैसे इनमे से कुछ परम्पराएं तो संस्कृति से जुड़ी हैं पर वहीं कुछ बेवजह और अजीब सी हैं.. ऐसी ही एक अजीब परम्परा हिमांचल प्रदेश के एक गांव में सालों से चली आ रही है। दरअसल इस गांव में शादीशुदा महिलाओं को परम्परा के नाम पर 5 दिनों तक निर्वस्त्र रहना पड़ता है। जी हां, आपको सुनने में ये भले ही अजीब लगे पर आज भी वहां इस अजीबो-गरीब परम्परा का पालन किया जाता है। चलिए जानते हैं कि आखिर इस परम्परा के पीछे की वजह क्या है..
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दरअसल हम जिस गांव की बात कर रहे हैं वो है हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण घाटी में बसा पीणी गांव। इस गांव में सावन के महिने में ये अजीब परम्परा निभाई जाती है जब 5 दिनों तक औरते कपड़े नहीं पहनती और इस परंपरा को निभाते समय महिलाओं को पुरुषों के सामने नहीं आना होता है । यहां तक की महिला को अपने पति से भी दूर रहना होता है।
चलिए अब ये बताते हैं कि आखिर इस परंपरा को लोग क्यों निभा रहे हैं। दरअसल यहां के लोगों का मानना है कि अगर यहां कोई भी महिला इस परम्परा का निर्वाह नहीं करती है तो उसके घर में जरूर कुछ अशुभ घटित होता है। यही वजह है कि लोग डर से इस परंपरा को आज भी निभा रहे हैं जो कि उनके पूर्वजों के समय से चली आ रही है।

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हालांकि अब इस परंपरा में कुछ परिवर्तन आ गया है और औरतें इन 5 दिनों तक निर्वस्त्र रहने की बजाए काफी बारीक कपड़े पहनने लगी हैं। साथ ही अगर इस परम्परा की बात की जाए तो सावन के महीने में इन दिनों लोग हंसना तक बंद कर देते हैं और सिर्फ घरों में पूजा-पाठ किया जाता है। वैसे इस रीति-रिवाज की अच्छी बात ये है कि इसे निभाते वक्त लोग 5 दिन तक सभी बुराईयों से दूर रहते हैं।

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वैसे देखा जाए तो ये परम्परा कुछ ऐसे ही जैसे नवरात्र के समय हिन्दु धर्म में और रमजान के वक्त इस्लाम में लोगों को सभी बुराइयों से रहना होता है लेकिन फिर भी किसी परम्परा के नाम पर महिलाओं का निर्वस्त्र रहने का औचित्य समझ नहीं आता है। दरअसल कोई भी परम्परा या नियम जब बनाए जाते हैं तो उस काल विशेष के हिसाब से अनुकूल होते हैं लेकिन समय के साथ उनकी कोई विशेष जरूरत नहीं रह जाती है। ऐसे में किसी भी पुरानी परम्परा को बिना सोचे समझे निभाने की बजाए उसके औचित्य पर भी लोगों को विचार करना चाहिए .. ताकि समाज में परम्परा के नाम पर ऐसे अजीबो-गरीब हरकतों को तरजीह ना मिले।

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